Saturday, 1 November 2025

मेरा मन अभी शांत है

हे केशव,

मेरा मन अभी शांत है,

बहुत शांत है।

तुमने क्या कहा — मैंने न समझा,

बस तुम्हारे शब्द सुने।

हे केशव,

अब मेरा मन शांत है।

तुम हो भी या न हो,

शिव हैं भी या नहीं,

मैं विश्वास करूँ या न करूँ,

कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता,

क्योंकि मेरा मन अभी शांत है।

मैं यश पाऊँ या अपयश,

शक्तिमान बनूँ या शक्तिहीन,

भोग-विलास करूँ या असंख्य पीड़ा सहूँ,

कुछ भी अंतर नहीं पड़ेगा —

मेरा मन अभी शांत है।

मैं जिऊँ या मरूँ,

कोई जिए या मरे,

मैं अकेला रहूँ या भीड़ में,

न दोस्त, न दुश्मन,

न अपने, न पराए —

कुछ भी फ़र्क़ नहीं पड़ता।

क्योंकि मेरा मन अभी शांत है।

मैं वाद करूँ या विवाद,

आस्तिक बनूँ या नास्तिक,

पाप करूँ या पुण्य —

कुछ भी फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, केशव।

क्योंकि मेरा मन अभी शांत है,

मेरा मन अभी… शांत है।

— गजानन