हाँ है,
मेरी क़लम में जान है।
लिख सकता हूँ मैं —
बिना किसी ख़ौफ़ के।
तुम लोग
सच से बहुत दूर हो,
और मुझे बिना मतलब
जज करना छोड़ दो।
मैं निडर था —
इसीलिए किया सामना इस ब्रह्म का।
ये शरीर मैं नहीं,
इसके अंदर जो हूँ — वही मैं हूँ।
मृत्यु ही आख़िरी सच है,
और अगर उसके बाद भी कोई दुनिया है,
तो मैं उसका ग़ुलाम नहीं —
ना स्वर्ग का, ना नरक का।
मैं घूमता रहूँगा इस अनंत अंतराल में।
भले ही छोटा सही,
मेरा अपना वजूद है।
मेरे लिए हर कोई एक समान है —
सम्मान से।
और मैं भी चाहता हूँ
कि तुम मुझे सम्मान दो।
तुम मुझे तोड़ नहीं सकते,
क्योंकि मेरा एक वजूद है।
कौन सी सज़ा दोगे तुम?
दर्द तो मेरा दोस्त है —
वक़्त के साथ वो भी मुझे छोड़ देगा।
तुम घूमते रहो
इस खेल में इधर-उधर,
पर मुझे नहीं खेलना ये खेल।
मैं कोई कठपुतली नहीं हूँ —
मेरा अपना वजूद है।
मेरा एक वजूद है।
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